जिसमें अच्छी किस्म के गेहूं को दोबारा से छाना जाता है ताकि उसमें से छोटे पतले गेहूं अलग हो जाते हैं और कुएं से हाथ के द्वारा रस्सी की मदद से खींचे गए छनेपानी का ही उपयोग गेहूं को धोने के लिए किया जाता हे क्यों कि हमारे अनेक साधु संत एवं प्रतिमा धारी हाथ से खींचे गए जल का प्रयोग से बनी साम्रगी का ही उपयोग अपनी आहार चर्या में करते हैं और आहार का मुख्य स्रोत गेहूं ही होता है ,जिसमें बिलचानी के माध्यम से जीवों की रक्षा की जाती हैं
बिलचानी से तात्पर्य ,एक मोटे कपड़े का उपयोग पानी छानने के लिए किया जाता हे जिसमें सूर्य की किरणें आरपार ना हो ,जिस पात्र का उपयोग पानी छानने के लिए किया जाता है उस पात्र से कपड़ा 3 गुना बढ़ा होता हे, जैन धर्म के अनुसार अन छने पानी में असंख्यात जीव होते हे जिनकी बिलचानी के माध्यम से रक्षा की जाती है, पानी को छान कर पुनः उन जीवों को उसी जल स्रोत में छोड़ दिया जाता हे और असंख्यात जीवों की रक्षा की जाती हे